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नई दिल्ली। केरल में स्थानीय निकाय चुनाव नतीजों ने 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल को साफ कर दिया है। सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को इस चुनाव में भारी नुकसान हुआ है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में जोरदार वापसी की है। वहीं, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने भी अपनी पकड़ मजबूत करते हुए केरल की राजनीति को सिर्फ लेफ्ट बनाम कांग्रेस की लड़ाई तक सीमित ना रहने देने के संकेत दिए हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केरल में निकाय चुनावों को हमेशा विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जाता रहा है। इस बार के नतीजे लेफ्ट के लिए इस स्तर पर अनुकूल नहीं माने जा रहे हैं। राज्य के कई जिलों में यहां तक कि लेफ्ट के परंपरागत गढ़ों में भी उसे नुकसान हुआ है। कांग्रेस गठबंधन सबसे बड़ा लाभार्थी बनकर उभरा है, जबकि बीजेपी ने खासतौर पर शहरी इलाकों में अपनी मौजूदगी को मजबूत किया है। इससे यह संकेत मिल रहा है कि केरल की राजनीति अब पूरी तरह द्विध्रुवीय नहीं रह सकती।
बता दें छह नगर निगमों में से चार पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने जीत हासिल की, जबकि एक-एक नगर निगम एलडीएफ और एनडीए के खाते में गया। नगर पालिकाओं की बात करें तो 86 में से 54 पर यूडीएफ को जीत मिली, एलडीएफ 28 पर सिमट गया और एनडीए ने दो नगर पालिकाओं में सफलता हासिल की है। ग्राम पंचायत स्तर पर कांग्रेस गठबंधन ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 941 में से 504 पंचायतों पर कब्जा जमाया। वहीं एलडीएफ को 341 और एनडीए को 26 पंचायतों में जीत मिली। ब्लॉक पंचायतों में एलडीएफ ने 63 और यूडीएफ ने 79 सीटें जीतीं, जबकि जिला पंचायत स्तर पर दोनों गठबंधनों को सात-सात सीटें मिलीं।
यह पहली बार है जब केरल के ग्रामीण स्थानीय निकायों में कांग्रेस ने इतनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। आमतौर पर पंचायत स्तर पर सीपीआई(एम) का मजबूत कैडर नेटवर्क और संगठनात्मक पकड़ मानी जाती रही है, लेकिन इस बार यह बढ़त भी कमजोर पड़ती दिखी। केरल के चुनावी इतिहास को देखें तो स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों के नतीजों के बीच मजबूत संबंध रहा है। 2010 में जब कांग्रेस ने निकाय चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था तो अगले ही साल 2011 में यूडीएफ ने सरकार बनाई थी। इसके उलट 2020 के निकाय चुनावों में एलडीएफ की जीत के बाद 2021 में सीएम पिनराई विजयन ने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल कर इतिहास रच दिया था। इसी पैटर्न को देखते हुए मौजूदा नतीजों को लेफ्ट सरकार के खिलाफ जनभावना में बदलाव का शुरुआती लेकिन अहम संकेत माना जा रहा है।
निकाय चुनाव के नतीजों का सबसे चौंकाने वाला पहलू शहरी इलाकों में एलडीएफ की भारी हार हुई। यूडीएफ ने कोल्लम, त्रिशूर और कोच्चि नगर निगम लेफ्ट से छीन ली और कन्नूर को बरकरार रखा। कोल्लम और त्रिशूर क्रमशः 25 और 10 सालों से लेफ्ट के कब्जे में था। कोझिकोड नगर निगम में मुकाबला बेहद करीबी रहा, जहां एलडीएफ ने मामूली बढ़त के साथ जीत दर्ज की। लेफ्ट के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक झटका राजधानी तिरुवनंतपुरम में लगा। यहां सीपीआई(एम) के 45 साल पुराने गढ़ में एनडीए आगे निकल गया। तिरुवनंतपुरम नगर निगम की 101 में से 50 डिवीजन जीतकर एनडीए ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया। एलडीएफ सिर्फ 29 सीटों पर सिमट गया, जबकि यूडीएफ को 19 सीटें मिलीं। पीएम मोदी ने इसे केरल में बीजेपी के लिए एक वाटरशेड मोमेंट बताया।

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