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दमिश्क। सीरिया में लंबे समय से जारी गृहयुद्ध और राष्ट्रपति बशर अल-असद की बेदखली के पीछे की कहानियां सामने आने लगीं हैं। यहां माना जा रहा है कि असद शिया समुदाय से थे और सुन्नी यहां बहुसंख्यक हैं। इसलिए सुन्नियों में इस बात की टसन थी कि बहुसंख्यक पर अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति कैसे राज कर सकता है। इसी के चलते मौका मिलते ही असद को बेदखल कर दिया गया। और उन्हे रुस भागना पड़ा।
यह धार्मिक विभाजन सीरिया के संघर्ष का मुख्य कारण रहा है। हालांकि, अल-असद परिवार दशकों तक सत्ता पर काबिज रहने में सफल रहा, जिसमें सेना और सुरक्षा एजेंसियों पर उनके कड़े नियंत्रण की बड़ी भूमिका रही। सेना में अल्पसंख्यक अलावित समुदाय का वर्चस्व था, जिसने उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मदद की। अल-असद सरकार पर सुन्नी समुदाय के उत्पीड़न और विरोधियों को दबाने के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। गृहयुद्ध के दौरान उनकी सेना ने सुन्नी विद्रोहियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा का सहारा लिया। इस दौरान रूस और ईरान जैसे देशों का समर्थन अल-असद सरकार को लगातार मिलता रहा। ईरान, जिसे शिया इस्लाम का प्रमुख केंद्र माना जाता है, ने भी सीरिया में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए अल-असद का साथ दिया। इसके विपरीत, दुनिया भर के सुन्नी मुस्लिम अल-असद को अपने विरोधी के रूप में देखते हैं।
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद की जड़ें गहरी हैं। शिया मुसलमानों का मानना है कि इमामों की नियुक्ति पैगंबर मुहम्मद द्वारा तय की गई और यह वंशानुगत होती है, जबकि सुन्नी समुदाय इसे सामूहिक निर्णय का विषय मानता है। इन धार्मिक मतभेदों ने ऐतिहासिक रूप से संघर्ष को जन्म दिया है। सीरिया में यह संघर्ष राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के कारण और भी गहरा हो गया। भारत में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच स्थिति अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण है। भारत में शिया मुस्लिमों की आबादी लगभग 20% है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में केंद्रित है। हालांकि, धार्मिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं में मतभेद के कारण दोनों समुदायों के बीच कभी-कभी तनाव देखा गया है। सीरिया का संघर्ष यह दिखाता है कि धार्मिक विभाजन किस तरह एक देश को खतरनाक गृहयुद्ध की ओर धकेल सकता है।

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